गुरुर ब्रह्मा
जनसामान्य की दृष्टि से गुरु और गोविंद अलग-अलग हो सकते हैं। किंतु आध्यात्म की गहराई से देखा जाए तो गुरु और गोविंद कोई दो नहीं बल्कि एक ही है। गुरु वो है जो गोविंद तक जाने का रास्ता बतलाता है और गोविंद वो मंजिल है जहां तक गुरु के मार्गदर्शन से पहुंचना है। जिस प्रकार अर्जुन और श्रीकृष्ण एक ही है। अर्जुन वो हैं जिस के भीतर श्री कृष्ण वास करते हैं और बाहर से अर्जुन श्री कृष्ण के दर्शन और ज्ञान के लिए लालायित हैं। अर्जुन सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर होते हुए भी कृष्ण के सामने अपनी कमजोरी का प्रदर्शन करते हैं ताकि उन्हें वह उपदेश मिले जिसको प्राप्त करने के पश्चात जीव समस्त शोक से मुक्त हो जाता है। श्रीकृष्ण मंजिल भी है और मंजिल तक पहुंचाने वाले पथ प्रदर्शक भी हैं। वास्तव में देखा जाए तो गुरु ही गोविंद है और गोविंद ही गुरु है।
श्री कृष्ण ही हमें रास्ता बताने वाली गुरु भी हैं और और श्री कृष्ण ही गोविंद अर्थात परमात्मा हैं जहां तक हमें पहुंचना है।
जब अध्यात्म की दृष्टि से गुरु और गोविंद एक ही हैं तो कबीर साहब ने क्यों कहा है कि गुरु, गोविंद दोनों खड़े हों, तो हमें गुरु की प्रथम चरण स्पर्श करना चाहिए? क्योंकि गोविंद रुठ गए तो गुरु मना लेंगे किंतु गुरु रुठ गए तो गोविंद नहीं मना पाएंगे।
कहने का तात्पर्य है गुरु के अंदर गोविंद हैं। गुरु गोविंद तक पहुंचने का भेद जानते हैं इसलिए यदि गुरु ही नहीं रहेंगे अर्थात गोविंद तक पहुंचने का मार्ग बताने वाला ही नहीं रहेगा तो गोविंद कैसे मिलेंगे? यही कारण है कि कबीर साहब ने गुरु को गोविंद से अधिक महत्व दिया है। किंतु वास्तव में गोविंद ही गुरु है और गुरु ही गोविंद है। क्योंकि बिना गोविंद की कृपा से गुरु नहीं मिलते और बिना गुरु की कृपा से गोविंद नहीं मिलते। अर्थात जिस प्रकार आत्मा और परमात्मा एक ही हैं, ठीक उसी प्रकार गुरु ही गोविंद है और गोविंद ही गुरु है। गोविंद जब अपने तक पहुंचने का मार्ग बताने वाला बन जाए तो वो ही गुरु है , जैसे श्रीकृष्ण ही गोविंद है और श्रीकृष्ण ही गुरु है। श्रीकृष्ण तो परमात्मा हैं ही और गीता के उपदेश से स्वयं तक पहुंचने का मार्ग बदला देने से गुरु भी श्रीकृष्ण ही हैं।
मानलो कि तुम्हारे जीवन में अंधेरा है और दूर कहीं प्रकाश स्थिति है, तुम्हें उस प्रकाश तक पहुंचना है, किंतु तुम्हारे जीवन में अंधेरा होने के कारण तुम्हें उस प्रकाश तक पहुंचने का मार्ग दिख नहीं रहा है, इस अवस्था में उस प्रकाश से ही तुम्हें अपने मार्ग का अनुभूति होता है, जिस प्रकाश तक तुमको पहुंचना है। इस प्रकार लक्ष्य भी वही है और लक्ष्य तक ले जाने वाला हमसफर भी वही है।