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𝗟𝗮𝗻𝗴𝘂𝗮𝗴𝗲

वेदांत , उपनिषद और गीता प्रचारक

स्वयं का विरोध ही कृष्णत्व

स्वयं का विरोध ही कृष्णत्व

स्वयं का विरोध ही कृष्णत्व



अक्सर लोग या तो अपने मन की इच्छा से या फिर अपने गुरु के मत पर जीवन जीते हैं। जो अपने मन की इच्छा से जीवन जीता है उसको मन मत कहते हैं और जो पूर्णगुरु की आदेशानुसार जीवन जीता है, उसे गुरु मत अथवा संत मत कहते हैं। लेकिन आजकल कल के युग में पूर्ण गुरु का मिलना असंभव है। गीता मे लिखा है कि अपनी इच्छाओं का त्याग करके इच्छारहित और ममतारहित हो जाओ। तुम्हारे धर्मगुरु तुम्हारी इच्छापूर्ति का उपाय बताते हैं। इस प्रकार तुम्हारे धर्मगुरु श्रीमद्भगवद्गीता का विरोध करते हैं और तुम अज्ञानता के कारण उनके दास बने बैठे हो। जरा तुम एक बार श्रीमद् भगवत गीता ,श्रीराम गीता ,अष्टावक्र गीता, इत्यादि पढ़ो फिर तुम्हें इन ढोंगी गुरुओं की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी और ना ही किसी पंडित अथवा पुजारी की। तुम्हारे धर्मगुरु तुम्हें कभी नहीं कहते की श्रीमद् भगवत गीता का पालन करो, श्रीराम गीता पढ़ो और अष्टावक्र गीता पढ़ो। जिस दिन तुम श्रीकृष्ण के हो जाओगे उस दिन से तुम्हें किसी ढोंगी गुरु की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी। क्योंकि कृष्ण ही गुरु हैं और कृष्ण ही गोविंद हैं।
तुम्हारे धर्मगुरु तुम्हें कहते हैं कि सुबह बह्म मूहूर्त में जागने से ईश्वर घर में आते हैं जबकि श्रीमद्भगवद्गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं कि मैं सभी कालों (समय) से परे हूँ। यदि बह्म मुहूर्त इतना ही विशेष है तो फिर सूर्य प्रत्येक का स्थान पर एक साथ नहीं निकलता, इस प्रकार बह्म मूहूर्त भी सभी स्थान पर एक साथ नहीं हो सकता।
तुम्हारे धर्मगुरु तुम्हें सिखाते हैं कि स्त्रियों को मासिक धर्म के समय में पूजा पाठ इत्यादि नहीं करना चाहिए क्योंकि इस दौरान लोग स्त्रियों को अपवित्र मानते हैं। 
अब आप जरा यह मुझे बताओ कि जब किसी घर में कचरा अंदर होता है तब वह अपवित्र होता है? या कचरा बाहर निकलने के बाद में घर अपवित्र होता है। साधारण सी बात है कि कचरा बाहर निकलने पर ही घर पवित्र होता है और घर के अंदर कचरा होता है तो घर अपवित्र है। ठीक उसी प्रकार जो मासिक धर्म में ब्लल्डिंग हुई और जो पदार्थ बाहर निकला। उस पदार्थ के बाहर निकलने से औरत कैसे अपवित्र हो गई?मासिक धर्म में जो पदार्थ बाहर निकलता है वह सदैव से तो उस शरीर में था ही , किंतु बाहर निकलने पर वह अपवित्र कैसे हो गई? इस हिसाब से देखा जाए तो वह सदैव अपवित्र थी जबकि केवल मासिक धर्म में कचरा निकलने के बाद ही वह पवित्र हुई। और मासिक धर्म का जो पदार्थ है, वह गंदा कैसे हो गया? क्योंकि वह तो अन्न (अनाज) से ही बना था। हमने खाना खाया, गेहूं खाया, और उस खाने के पाचन से अस्थि, मज्जा, वीर्य, अंडाणु, इत्यादि बना। यदि अस्थि ,वीर्य ,अंडाणु, इत्यादि सब अपवित्र हैं तो फिर अनाज भी अपवित्र ही हुआ , क्योंकि अनाज से ही तो वीर्य बना, अनाज से ही तो अंडाणु बना। लेकिन अनाज को तुम पवित्र मानते हो , दान में अनाज को देते हो और स्वयं भी खाते हो।
सत्य सौ नहीं होते, सत्य केवल एक होता है। सत्य केवल कृष्ण ही हैं, कृष्ण को परमात्मा कह दो, आत्मा कह दो, ब्रह्म कह दो, ईश्वर कह दो, गुरु कह दो। और जो कृष्ण की वाणी गीता का उल्लंघन करता है वह सनातनी कदाचित कोई नहीं सकता। वास्तव में उसका सनातन धर्म से कोई संबंध नहीं है। सच्चा सनातनी वही है जो कृष्ण का पालन करें गीता का पालन करें ,उपनिषद का पालन करें। कृष्ण के शिवाय कोई दूसरा सत्य नहीं है। इसलिए गीता पर जोर दो और कृष्ण पर जोर दो , ढोंगी धर्मगुरुओं पर नहीं।

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