प्रश्नकर्ता - स्त्रियां मासिक धर्म में दूषित क्यों?
प्रश्न- सर क्या सच में स्त्रियां मासिक धर्म के समय में दूषित अर्थात अपवित्र होती हैं?
आनंदित लोग - इस बात को पूरी तरह से जान लेना बड़ा जरूरी है कि यदि कोई कहता है कि स्त्रियां मासिक धर्म के समय में अपवित्र होती हैं तो यह बात बड़ी बचकानी और मूर्खता की है।
यह बात बहुत मूर्खतापूर्ण है। यदि स्त्रियां अपवित्र होती है तो स्त्रियों ने ही पुरुषों को जन्म दिया है। तो इस प्रकार हम सभी अपवित्र हो गए। इसलिए यह तर्क सत प्रतिशत गलत है। स्त्रियों में मासिक धर्म का आध्यात्म से कोई संबंध नहीं। क्योंकि मंदिरों में शरीर की व्याधियों को दूर करने नहीं जाते हो बल्कि मन के व्याधियों दूर करने जाते हो। शरीर की व्याधियों को दूर करने के लिए अस्पताल जाते हो, मंदिर नहीं जाते हो। इसलिए शरीर का आध्यात्म से कोई संबंध नहीं है। यदि आध्यात्म का संबंध है भी तो मन से। महाभारत की जो लड़ाई है वह वास्तव में हमें स्वयम् से लड़ना सिखाती हैं। और स्वयं की विरुद्ध जाना ही वास्तविक युद्ध है। अन्यथा इतिहास युद्धों से भरा पड़ा है।
यदि थोड़ी समय के लिए मान भी लेडी स्त्रियां मासिक धर्म में दूषित हो जाती है। तो जरा विचार करिए कि आपके घर से यदि अपशिष्ट बाहर निकलता है तब आपका घर अपवित्र होता है या फिर जब अपशिष्ट आपके घर के अंदर होता है सब आपका घर अपवित्र होता है?
वास्तव में विज्ञान की दृष्टि कहती है कि मासिक धर्म में गर्भाशय से अंडाणु की व्यर्थ अपशिष्ट बाहर निकलते हैं। और मासिक धर्म के समय में स्त्रियों को काफी पीड़ा होती है इसलिए स्त्रियों को उन दिनों में आराम की जरुरत होती है। लेकिन यह भ्रांतियां लोगों में खूब प्रचलित है कि मासिक धर्म में स्त्रियाँ अपवित्र होती हैं।
अरे भाई! शरीर से आध्यात्म का क्या लेना देना?
ईश्वर का संबंध मन से होता है। इसलिए ईश्वर को मन में रखिए अर्थात ईश्वर को मन से पूजीए, तन और इंद्रियों से नहीं। लेकिन हम इसका बिल्कुल उल्टा करते हैं। हम इंद्रियों से ईश्वर को पूजते हैं और मन से संसार को भोगते हैं। जबकि वास्तव में हमें मन से परमात्मा की अराधना करनी चाहिए और तन से संसार में जो कुछ मिले ईश्वर की इच्छा समझकर भोगना चाहिए।
कोई जगह नहीं, कोई समय नहीं, कोई जीव नहीं, जिसमें ईश्वर ना हो। परंतु तुम्हें ईश्वर को देखने के लिए भौतिक आंखों को छोड़कर आध्यात्मिक नेत्रों से देखना पड़ेगा। परंतु वही बात है कि हिंदू कहता है कि मुझे राम प्रिय हैं, और मुसलमान कहता है कि उसे रहीम प्रिय हैं, और ऐसे आपस में लड़कर मृत्यु तक पहुंच जाते हैं किंतु इसका मर्म नहीं जान पाते कि वास्तिकता क्या थी?
ईश्वर शरीर की शुद्धता को नहीं देखते अपितु मन की निर्मलता को भलीभांति देखते हैं। इसलिए परमात्मा का मन से स्मरण करो।